जूता कांड: क्या ये यूपी बीजेपी में ब्राह्मण-क्षत्रिय वर्चस्व की लड़ाई है?

संतकबीर नगर में ज़िला कार्ययोजना की बैठक के दौरान दो जनप्रतिनिधियों के बीच हुई 'अभूतपूर्व घटना' के पीछे इन दोनों नेताओं के निजी टकराव के अलावा पार्टी में चल रही आंतरिक खींचतान और पूर्वांचल में लंबे समय से दबे 'ब्राह्मण-क्षत्रिय वर्चस्व' की लड़ाई तक सामने आ रही है.

हालांकि घटना की शुरुआत तो एक बेहद सामान्य सी बात से हुई लेकिन उसके पीछे सांसद शरद त्रिपाठी और विधायक राकेश बघेल के बीच वर्चस्व की लड़ाई ही है. स्थानीय पत्रकार अजय श्रीवास्तव भी उन पत्रकारों में से हैं जो बुधवार को हुई घटना के प्रत्यक्षदर्शी रहे.

वो बताते हैं, "नंदऊ बाज़ार से बांसी तक की क़रीब 25 किमी लंबी सड़क सांसद के प्रयास से बनी थी. ये सड़क मेंहदावल विधानसभा क्षेत्र में आती है, जहां से राकेश बघेल विधायक हैं. सड़क बन जाने पर जो शिलापट्ट लगा उसमें अपना नाम न देखकर सांसद भड़क गए और प्रभारी मंत्री से उसी बारे में अधिकारियों की शिकायत कर रहे थे."

अजय श्रीवास्तव के मुताबिक, ये तो एक तात्कालिक मामला था जबकि दोनों के बीच टकराव के मामले कई बार सामने आए हैं.

शरद त्रिपाठी बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी के बेटे हैं और खलीलाबाद सीट से उन्हें साल 2009 का लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद 2014 में दोबारा टिकट दे दिया गया और वो जीत भी गए.

स्थानीय लोगों की मानें तो सांसद शरद त्रिपाठी और संतकबीर नगर ज़िले की तीन विधानसभा सीटों से जीते विधायकों के बीच टकराव की स्थितियां पहले भी देखने में आई हैं, ख़ासतौर पर मेंहदावल से विधायक राकेश बघेल के साथ.

पिछले दिनों ज़िले में पार्टी के 'मेरा बूथ सबसे मजबूत' सहित कई कार्यक्रमों के दौरान ये बातें साफ़ तौर पर दिखाई दीं.

पिछले साल जून महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब मगहर गए थे तो उस कार्यक्रम के आयोजक सांसद शरद त्रिपाठी थे लेकिन वहां भी सांसद और विधायकों में तालमेल की कमी और खींचतान राजनीतिक सुर्खियों में थी.

इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने शरद त्रिपाठी की कबीर पर लिखी एक किताब का विमोचन भी किया था लेकिन शरद त्रिपाठी पर विधायकों को उचित सम्मान न देने का आरोप भी लगा था.

जानकारों के मुताबिक ऐसे विवादों को राजनीतिक विवाद और टकराव के रूप में लिया जा सकता है, लेकिन दोनों के बीच विवाद की असली जड़ कहीं और है.

अजय श्रीवास्तव बताते हैं, "मेंहदावल इलाक़े के एक थानेदार के ट्रांसफ़र को लेकर दोनों में खुलकर विवाद हुआ था. ये विवाद सीधे तौर पर जाति से जुड़ गया था क्योंकि ब्राह्मण समुदाय के थानेदार को हटाकर विधायक राकेश बघेल क्षत्रीय थानेदार को बैठाना चाहते थे."

"ब्राह्मण थानेदार के पीछे शरद त्रिपाठी खड़े थे. इस विवाद में विधायक राकेश बघेल की जीत हुई और उनका एक ऑडियो वायरल हुआ जिसमें वो कह रहे थे कि विटामिन बी साफ़ हो गया."

यहां विटामिन बी का संबंध ब्राह्मण शब्द से जोड़ा गया और ये विवाद दो थानेदारों और सांसद-विधायक के दायरे से निकलकर ब्राह्मण-क्षत्रीय जाति-समूह तक पहुंच गया.

लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि लंबे समय से इन दोनों समुदायों में चली वर्चस्व की लड़ाई पिछले कुछ वर्षों में मंद ज़रूर पड़ गई थी लेकिन अब वो फिर से सतह पर आ गई है.

योगेश मिश्र कहते हैं, "पूर्वांचल में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद कथित तौर पर क्षत्रियों का वर्चस्व जिस तरह से बढ़ा है और ब्राह्मण वर्ग एक तरह से ख़ुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है, उसने उस पुराने विवाद को फिर से खोद निकाला है, जिसका यह इलाक़ा लंबे समय तक ग़वाह रहा है."

"चूंकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में ब्राह्मणों और क्षत्रियों दोनों ने ही बीजेपी के पक्ष में जमकर मतदान किया था, इसलिए दोनों वर्गों के हितों में ज़रा भी असंतुलन निजी विवादों से आगे बढ़कर जातीय अस्मिता तक पहुंच जाता है."

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